क्षमा शर्मा का " नेम प्लेट " : नये यथार्थ-बोध की कहानियाँ
----राजीव रंजन गिरि
पिछले कु छ दशकों से हर क्षेत्र में स्त्रियों की भागीदारी बढ़ी है। स्त्रियों ने अपने शोषण को पहचानकर शोषणमूलक संरचना को दरकाया भी है। इसके साथ शोषणकारी पितृसत्ता ने ऊपरी तौर पर खुद को बदला है, लेकिन अपने मूल चरित्र में ज्यादा फेरबदल नहीं की है। गौर करने पर पितृसत्ता का चरित्र ज्यादा जटिल और विकराल दिखता है। बदलाव के साथ गलबहियाँ कर शोषणमूलक संरचना ने शोषण का नया-नया तरीका ईजाद किया है। इसने तकनीक के आविष्कार से रिश्ता स्थापित कर, अपने हित में इस्तेमाल कर, शोषण जारी रखने की कोशिश की है। कथाकार क्षमा शर्मा ने अपने कहानी-संग्रह 'नेम प्लेट’ में स्त्रियों के जीवन व शोषण के विविध आयामों को चित्रित किया है। इस संग्रह की ज्यादातर कहानियाँ छोटी हैं, लेकिन अपने मकसद में सफल। ये कभी-कभी धीरे से झटका देती हैं तो कभी 'नावक के तीर’ की तरह तेज आघात पहुँचाती हैं। इस संग्रह की कहानियों में पितृसत्ता के विभिन्न रूपों में हो रहे जटिल बदलाव पर लेखिका की पैनी नजर दिखती है।
बाजार और तकनीक के विकास के साथ स्त्री भी बदलकर नये रूप में सामने आयी है। यह 'नयी स्त्री’ मध्य वर्ग की है। इसे बाजार ने एक स्तर पर 'लिबरेटेड वूमन’ बनाया है तो दूसरे स्तर पर पितृसत्ता के मकडज़ाल में फँसाया भी है। क्षमा शर्मा की कहानियाँ एक तरफ नयी स्त्री की आजादी, उसके बिन्दास रूप को चित्रित करती है तो दूसरी तरफ यह भी बताती है कि वास्तव में उन्हें कितनी आजादी हासिल है! पिछले कुछ वर्षों में, स्त्री-जीवन के विविध आयामों पर केन्द्रित इस कहानी-संग्रह की मानिन्द शायद ही कोई संग्रह आया हो।
अ_ाइस कहानियों के इस संग्रह में स्त्रीवाद का कोई चलताऊ फार्मूला नहीं है। बल्कि इस तरह के फार्मूले से परहेज कर वास्तविक जीवन के सवालों को उठाया गया है। संग्रह की पहली कहानी 'दादी माँ का बटुआ’ टी. आर. पी. बढ़ाने के लिए दिखाये जा रहे एक कार्यक्रम पर आधारित है। 'दादी माँ का बटुआ’ प्रोग्राम में, खरखूशटी देवी लड़की मारने की परम्परागत विधि बताती है। एंकरिंग करने वाली महिला ने प्रोग्राम के दर्शकों से पहले ही कहा है कि 'प्रोग्राम के बाद मंै आपसे एक इनामी सवाल पूछूँगी। इस सवाल का सबसे अच्छा उत्तर देने वाले को मिलेगा- लन्दन जाने का टिकट और ढेर सारे गिफ्ट हैम्पर्स।’ इस घोषणा के साथ खरखूशटी देवी से एक-एक कर सवाल पूछा जाता है। खरखूशटी चटखारे ले-लेकर लड़कियों को मारने का तरीका बताती है। यह कहानी ऐसी बुनी गयी है कि खरखूशटी द्वारा दिया गया निर्मम एवं खतरनाक जवाब, सिर्फ एक जवाब लगता है। लेकिन आखिर में इसके खतरनाक मंसूबे का अहसास होता है। इनामी सवाल के तौर पर वी. जे. पूछती है 'आज बतायी गयी लड़की मारने की पद्धतियों में से अपने घर में आप क्या अपनाते हैं, या अपनाना चाहेंगे। यदि कोई नयी पद्धति आप जानते हैं तो तुरन्त लिख भेजिए। लड़की मारने की सबसे अच्छी प्रविधि बताने वाले क ो मिलेगा, लन्दन का एक महीने का ट्रिप। ज्यूलर्स की तरफ से डायमंड सेट तथा और भी बहुत कुछ।’ यह कहानी कई सवालों को उठाती है। मसलन आखिर इस तरह के प्रोग्राम से टी. आर. पी. क्यों बढ़ता है? पुरानी खरखुशटी और नयी वी.जे. के साम्य के क्या कारण हैं?
'खेल’ पुरुषों की धूर्तता की कहानी है। प्रेम का छलावा कर शादी न करने वाला वर्मा कई सालों बाद जब टे्रन में निर्मला को देख कहता है 'इतने दिनों में तुम बहुत अधिक नहीं बदली हो... अरे तुम तो बिल्कुल पहले जैसी हो।’ लेकिन अब निर्मला इस छलावे में नहीं आने वाली। वह वर्मा की धूर्तता को पहचानती है। उससे कोई संवाद नहीं करना चाहती। वर्मा 'इमोशनली ब्लैकमेल’ करने के लिए अकेला खाना नहीं खाता। निर्मला उसके बगल वाली सीट पर, सोने की बजाय खड़ा रहकर सफर बिताना बेहतर समझती है। निर्मला सोचती है 'धोखेबाज तब मुझे धोखा दिया था, अब अपनी पत्नी को दे रहा है।’ इस कहानी की नायिका एक नयी स्त्री है, जो प्रेम का ढोंग रचने वाले को पहचानती है। नयी जि़न्दगी शुरू करने के बाद वह धोखा देने वाले प्रेमी को याद नहीं करती। इस कहानी की नायिका, वर्मा के नये 'खेल’ को सफल नहीं होने देती है। इसी तरह 'वेलेंटाइन डे’ कहानी की नायिका कहती है 'तुम्हें लग रहा होगा कि मैं उन बीते हुए वर्षों की डोर थामकर अब भी तुम्हारे इन्तजार में बैठी होऊँगी। मीरा की तरह गा रही होऊँगी कि मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरा ना कोई–हमेशा मीरा चाहिए–आँसू बहाती हुई–तड़पती हुई–एक कमजोर औरत, जिससे जब चाहो पीछा छुड़ा लो–विवाह के वक्त तुम्हारी पत्नी तुम्हारी सबसे बड़ी उपलब्धि थी। उसके पिता ने मोटी रकम दी थी। वह खूबसूरत थी।’ निर्मला वर्षों बाद मिलने वाले प्रेमी के फ्लर्ट को समझकर फटकार लगाती है, उसे दुत्कारती है। स्त्रियों की मुक्ति पितृसत्तात्मक संरचना के साथ-साथ धोखेबाज प्रेमियों को पहचानने से भी होगी। क्योंकि कई बार पढ़ी-लिखी स्त्रियाँ पितृसत्ता की ऊपरी संरचना को तो समझ लेती हैं, पर आस्तीन के साँप धोखेबाज प्रेमी या पति को नहीं समझ पातीं। प्रेम का स्वाँग रचने वाले धोखेबाज प्रेमी पितृसत्ता के मूल्यों को पालते-पोसते हैं और भावनात्मक तौर पर स्त्रियों का शोषण करतेे हैं।
क्षमा शर्मा की कहानियों की नायिकाएँ अपने शोषण को देर-सबेर पहचान जाती हैं। इसे पहचानकर इसमें फँसी नहीं रहती, बल्कि इसे तोड़ती हैं। ये नायिकाएँ बराबरी का रिश्ता कायम रखने की कोशिश करती हैं। इस लिहाज से 'बराबर’ कहानी को देखा जा सकता है। इस कहानी की लड़की किसी तरह कमतर रहना नहीं चाहती। लड़का अँग्रेजी बोलकर, अपनी झूठी तारीफ कर उसे प्रभावित करने की कोशिश करता है। लड़की उसकी झूठी तारीफ को सुनकर उस पर विश्वास नहीं करती। साथ ही लड़का से ज्यादा फर्राटेदार अँग्रेजी बोलती है। इस लड़की को हर क्षेत्र में बराबरी चाहिए। यह निहायत आधुनिक लड़की है। लड़का के बराबर कमाती है। बराबर खर्च करती है। अपना किराया खुद देती है। लड़का कहता है 'अरे तुम दस रुपये में ईक्वलिटी की बात कर रही हो।’ लड़की जवाब देती है 'दस रुपये या लाखों रुपये। बुरा मत मानना मेल ईगो इस बात से बहुत सेटिसफाइड होती है कि वह साथ चलती लड़की के ऊपर पैसे खर्च कर दे। लेकिन जब तुम्हारे साथ काम करती हूँ, तुम्हारे बराबर पैसा कमाती हूँ तो अपने लिए तुमसे पैसे क्यों खर्च कराऊँ।’ यह नयी स्त्री, किसी स्तर पर 'मेल ईगो’ की परवाह नहीं करती है। हर स्तर पर अपने स्वाभिमान के प्रति सचेत ऐसी नायिकाएँ पुराने मानस को तार-तार कर देती हैं। कहना न होगा कि यह नयी, आधुनिक लड़की का बिल्कुल 'राइट च्वायस’ है।
इस संग्रह की कहानियाँ महानगर में रह रही स्त्रियों पर केन्द्रित हैं। भीड़-भाड़, भाग-दौड़ में छीजते रिश्ते, कूल, कैलकुलेटेड, नान कमिटल और रुथलेस जीवन जी रहे लोगों की जिन्दगी में पिस रही स्त्रियाँ इसकी किरदार हैं। क्षमा शर्मा ने अपने पात्रों को नैतिकतावादी बन्दिशों से मुक्त रखा है। ये बोल्ड हैं। व्यावहारिक गुणों से लैस। अपनी जिन्दगी खुद की मर्जी से जीना चाहती हैं। उन्हें अहसास है कि परम्परा, धर्म, परिवार सब मिलकर उनकी आजादी पर अंकुश लगाता है। इसलिए बड़े ही खिलन्दड़े अन्दाज में इनका मुकाबला करती हैं। अपने कार्य-व्यवहार से इनका मजाक बनाती हैं। इनके सामने यह रहस्य खुल चुका है कि 'यह शरीर ही अपना है। यही सच है। चाहे तो इसके जरिये कुछ पा सकती हो।’ गौर करने लायक बात यह है कि क्षमा शर्मा के स्त्री-चरित्र शरीर के जरिये कुछ भी पाने के दौरान अचेत नहीं हैं। बल्कि इस दौरान कौन-सी ताकत और संरचना उनका इस्तेमाल कर रही है, इसे सचेत रूप से समझ रही हैं। 'न्यूड का बच्चा’ कहानी की वीनू अपनी जिन्दगी को बेहतर बनाने के लिए सोचती है। 'जब वह अकेली थी, जीवन-संग्राम में जूझ रही थी तो शरीर ही सहारा बना। कौन सच हुआ– ईश्वर, नैतिकता के ठेकेदार मोर्चे खोलने वाले, स्त्रियों क ो वेश्या बताकर ठगने वाले या यह शरीर। उसका अपना शरीर। जिसने उसे और उसके बच्चे को जिन्दा रखा था। अपने पैरों पर खड़ा किया था।’ वीनू एक बेहतर जिन्दगी के लिए न्यूड मॉडलिंग का ऑफर स्वीकार कर लेती है। काबिलेगौर है कि वीनू न्यूड मॉडलिंग के जरिये अपने शरीर पर बाजार के आधिपत्य से अनजान नहीं है। वह जानती है कि उसके बालों पर किसी हेयर डाई बनाने वाली कम्पनी का नाम लिखा था। उसके दाँतों पर टूथपेस्ट की ट्यूबें जगमगा रही थीं। बिन्दी-काजल, पाउडर, कुंडल, चूड़ी सब जगह कम्पनियाँ खड़ी इठला रही थीं और उसकी कमनीय त्वचा पर क्रीम बनाने वाली कम्पनियों का युद्ध छिड़ा था। लिहाजा सवाल उठता है कि यह सब समझने के बावजूद वीनू न्यूड मॉडलिंग का ऑफर क्यों स्वीकार करती है? इस सवाल का जवाब महत्त्वपूर्ण है। दरअसल, वीनू को यह भी पता है कि 'स्त्री चाहे तो परम आज्ञापालक के रूप में अपने को खत्म करे या परम आजाद हो जाए। खत्म तो दोनों तरह से होना ही है। एक साथ तोलो आजादी का सुख जब तक हो तब तक पाओ।’ क हने की जरूरत नहीं कि जब स्त्री को दोनों रूपों में खत्म होना है तो 'परम आजाद’ होना ही श्रेयस्कर है।
'नेम प्लेट’ कहानी में कॉलेजों के दिनों में कई लड़कियों से फ्लर्ट करने वाले राहुल वर्मा को निर्मला पछाड़ देती है। राहुल वर्मा सीनियर मैनेजर की नौकरी करता है। शादी के लिए निर्मला को देखकर खारिज कर देता है। दूसरे दिन निर्मला उसके घर पहुँचकर बहस करती है। राहुल की बातें टेप कर उसे निरुत्तर कर देती है। दिलचस्प संवाद के बाद निर्मला कहती है 'मैंने आपकी सारी बातों को टेप कर लिया है। कॉलेज के जमाने में रहे होंगे आप नम्बर वन फ्लर्ट, लेकिन अब आप किसी लड़की का अपमान नहीं कर सक ते। मुझे कल तक शादी की डेट चाहिए। जल्दी-से-जल्दी। यह डेट मैं कोई बन्दूक की जोर पर नहीं, तुम्हारे बयानों के आधार पर ही माँग रही हूँ।’ राहुल वर्मा ने इतनी बड़ी पराजय, अपनी जिन्दगी में, पहले कभी नहीं देखी है। इससे पहले दूसरों को पराजित करने वाला राहुल खुद निर्मला से हार जाता है। क्षमा शर्मा ने निर्मला के रूप में एकदम नयी स्त्री को रचा है। यह नयी स्त्री फ्लर्टर को बखूबी समझती है और अपने अपमान का बदला लेती है।
इस संग्रह की अनूठी विशेषता है कि इसमें स्त्री अपनी खूबी और खामियों के साथ मौजूद है। लेखिका ने जान-बूझकर इन्हें पॉलिटिकली करेक्ट नहीं बनाया है। 'अगली सदी में एक लड़की’ कहानी में लड़की के मन में दहेज के प्रति कोई आदर्शवादी प्रतिरोध नहीं है। यह 'नयी’ लड़की अपने हित के लिए दहेज के पक्ष में तर्क दे सकती है। हर विचार को अपने पक्ष में करने के लिए जिरह कर सकती है। अपनी होने वाली सास द्वारा दहेज लेने से इन्कार करने पर कहती है कि अगर हम दोनों (पति-पत्नी) अलग रहेंगे तो हममें से एक की तनख्वाह तो किराये में चली जाएगी। फिर मम्पी-पापा से आप दहेज नहीं लेंगी तो मेरी और बकुल की जिन्दगी तो घर बनाने में ही निकल जाएगी। यह इस दौर की लड़की बोल रही है। एकदम कैलकुलेटेड। बिलकुल प्रैक्टीकल। हिन्दी कथा के वर्तमान परिदृश्य के लिए इस लड़की का आगमन एक नयी घटना है। यथार्थवाद का नारा लगाने वाले चिल्लाते रहें। दुनिया इस तरह भी बदल रही है। इसे नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता। क्षमा शर्मा और उनका यह संग्रह 'नेम प्लेट’ बदलते समय के इस महत्त्वपूर्ण और ओझल कर दिये गये पक्ष को चित्रित करने के लिए याद किया जाएगा। खास तरह के 'स्त्री-विमर्श’ और पॉलिटिकली करेक्टनेस की दुहाई देने वाले, भले ही चीखते रह जाएँ।
(2010)
स्त्री विमर्श का तात्पर्य यह कदापि नहीं कि सभी स्त्रियों को एक तराजू में तोल कर देखा जाए, जिस प्रकार सब स्त्रियाँ अपने आप में भिन्न हैं उसी प्रकार उनकी समस्याएं, व्यवहार भी भिन्न हैं।
जवाब देंहटाएं👌👌
जवाब देंहटाएंसार्थक आलेख | बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कहानिया हैँ सर आज के यथार्थ को दिखाया गया है !
जवाब देंहटाएंस्त्रियां किसी से कम नही हैँ वो अपने अधिकारों के लिए लड़ना जानती है और नए पितृसत्ता समाज से भी परिचित हैँ और गलत का विरोध करने में सक्षम हैँ
बहुत अच्छी कहानिया हैँ सर आज के यथार्थ को दिखाया गया है
जवाब देंहटाएंस्त्रियां किसी से कम नही हैँ वो अपने अधिकारों के लिए लड़ना जानती है और नए पितृसत्ता समाज से भी परिचित हैँ साथ ही गलत का विरोध करने में सक्षम हैँ l
A pompous and showy criticism, justifying as greasing the very things of years.
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा लेख सर 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार लेख है सर। ये अच्छी बात है आज स्त्रियां ने अपने हक को पहचाना है और अपने हक के लिए आवाज़ भी उठाई है।
जवाब देंहटाएं