हिन्दी सेवी संस्था कोश : राजीव रंजन गिरि
हिन्दी के विस्तार और विकास के लिए अखिल भारतीय स्तर पर अनेक संस्थाएँ काम कर रही हैं। हिन्दी के प्रचार-प्रसार एवं इसे लोकप्रिय बनाने में इन संस्थाओं का अहम योगदान है। वीरेन्द्र परमार ने व्यक्तिगत पहल से, हिन्दी में पहली बार संस्था कोश बनाया है। 'हिन्दी सेवी संस्था कोश’ का प्रकाशन भी इन्होंने खुद किया है। हिन्दी में प्रकाशकों की बढ़ रही संख्या के बावजूद इस महत्त्वपूर्ण कोश को लेखक द्वारा प्रकाशित करना, प्रकाशकों के चरित्र पर सवालिया निशान लगाता है। 'हिन्दी सेवी संस्था कोश’ (1091/टाइप-5, एन.एच. 4, फरीदाबाद-121001) में हिन्दी भाषा एवं देवनागरी लिपि के प्रचार-प्रसार और उन्नयन हेतु कार्यरत एक सौ तीन सरकारी- गैर-सरकारी हिन्दी सेवी संस्थाओं, संगठनों, विभागों आदि का प्रामाणिक विवरण पेश किया गया है। इस कोश को प्रामाणिक एवं अद्यतन बनाने के लिए वीरेन्द्र परमार ने इस दिशा में काम करने वाली संस्थाओं, संगठनों, विभागों आदि से सम्पर्क एवं पत्राचार कर कार्य-विवरण हासिल किया। इन्हीं विवरणों के आधार पर यह कोश सम्भव हो सका है। जाहिर है, यह एक दुरूह कार्य है; जो व्यक्तिगत स्तर पर, हिन्दी के प्रति मिशन की मानसिकता के बगैर सम्भव नहीं था। इसकी भूमिका को पढ़कर पता चलता है कि इस कार्य के वास्ते कई दफे सम्पर्क और पत्राचार करने के बावजूद कुछेक संस्थाओं ने सहयोग नहीं किया। बगैर किसी आर्थिक अनुदान के इस कोश की रचना और प्रकाशन वीरेन्द्र परमार क ी हिन्दी के विकास और विस्तार के प्रति गहरी आसक्ति का नतीजा है और सबूत भी। ऐसे ही लोगों की वजह से हिन्दी फल-फूल रही है, न कि हिन्दी की राजनीति करने वालों के क ारण।
(2010)
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