आओ, हिन्दी-हिन्दी खेलें
राजीव रंजन गिरि
सितम्बर में हिंदी के बारे में जरा जोर से शोर सुनायी पड़ता है. जिधर जाएँ ज्यादातर सरकारी और कुछ गैर सरकारी संस्थाओं में हिंदी सप्ताह या हिंदी पखवाड़ा का बैनर दिखेगा. 14 सितम्बर को ‘हिन्दी दिवस’ होने की वजह से उस दिन रस्म अदायगी की जाती है. विद्वान वक्ताओं को बुलाया जाता है और हिन्दी की मौजूदा स्थिति और भविष्य पर विचार किया जाता है. इस तरह की रस्म अदायगी के कार्यक्रमों में हिंदी की दारुण स्थिति के लिए खूब मर्सिया पढ़ा जाता है. ऐसे विद्वान वक्ताओं की बात पर गौर करें तो पाएंगे कि इनकी बातों में एक किस्म का फांक है. पता नहीं, वे लोग इन फांक पर क्यों नहीं नजर डालते. मसलन, हिंदी को लेकर होने वाले इन सेमिनारों में हिंदी की बढ़ती व्याप्ति और इसके प्रसार का जिक्र अभिमानपूर्वक किया जाता है. भाषा के तौर पर हिंदी का तेज रफ्तार से हो रहे विस्तार पर अभिमान करना स्वाभाविक भी है. परंतु हिंदी की बिगड़ती प्रकृति का जब मर्सिया पढ़ा जाता है तब थोड़ी देर पहले प्रकट किए अभिमान के वास्तविक कारकों को भूला दिया जाता है. कहने का आशय यह है कि हिंदी भाषा की बढ़ती व्याप्ति का एक बड़ा कारक बाजार, मीडिया और फिल्म उद्योग है. इन सबने हिंदी का ज्यादा प्रचार-प्रसार किया है. उन लोगों की बनिस्पत जो हिंदी का सिर्फ खेल खेलते हैं. और यह भय फैलाते रहते हैं कि वह दिन दूर नहीं जब हिंदी बिल्कुल बिगड़ जाएगी. ऐसे भयाक्रांत लोगों की बातों से दबे रूप में यह भी प्रगट होता है कि क्या पता हिंदी समाप्त ही न हो जाए! जिस फांक की चर्चा थोड़ी देर पहले की गयी है वह यह है कि जिन कारकों पर हिंदी को बिगाड़ने के लिए रोष प्रगट किया जाता है, असल में वे ही कारक हिंदी की व्याप्ति पर अभिमान प्रगट करने का अवसर भी प्रदान करते हैं.
हिंदी के बिगड़ने का मर्सिया पढ़ने वाले ज्यादातर लोगों के परेशानी का सबब यह है कि इनके लिए आज भी हिंदी एकवचन के तौर पर ही है. जबकि मौजूदा दौर में हिंदी एकवचन न रहकर ‘बहुवचन’ का रूप धारण कर चुकी है. यानी अब ‘हिंदी’ नहीं ‘हिंदियों’ की बात करनी होगी. जब भी किसी खास माध्यम की हिंदी को ही निर्धारक मानकर-बताकर शेष ‘हिंदियों’ को उस परखा जाएगा, निश्चित तौर पर गलत नतीजा निकलेगा. साहित्य की विभिन्न विधाओं की हिंदी को कसौटी बनाकर दूसरे माध्यमों मसलन प्रिंट-इलेक्ट्रानिक मीडिया या फिल्म की हिंदी का जब-जब मूल्यांकन किया जाएगा, तब-तब मर्सिया गाने के अलावा दूसरा रास्ता नहीं दिखेगा. क्या इस बात की पड़ताल करने की जरुरत नहीं है कि ऐसे मर्सिया गानेवाले लोगों को इस सवाल का अध्ययन करना चाहिए कि हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में किसकी भूमिका ज्यादा है? हालाँकि हिंदी के प्रचार-प्रसार में जिन माध्यमों की भूमिका कमतर दिखेगी, उनका महत्व इससे कम नहीं हो जाएगा. फिर भी यह जानना जरुरी होगा कि प्रचार-प्रसार में किसकी भूमिका कितनी है. ऐसा करने पर हिंदी की मर्सिया पढ़नेवालों का ध्यान हिंदी के विविध रूपों पर जाएगा. यानी कई तरह की ‘हिन्दियां दिखेगी. और सबके अलग-अलग महत्व का भी अहसास होगा.
बहरहाल, इतिहास गवाह है कि ‘खड़ी बोली’ से आधुनिक हिंदी के रुपांतरण की प्रक्रिया में बाजार की एक बड़ी भूमिका रही है. इसी बाजार ने इसका व्यापक प्रचार-प्रसार भी किया है. जाहिर है इसकी अपनी शर्त और इसका अपना खास मकसद भी रहा है. यह कहकर भाषा को गढ़ने और इसके स्वरूप का निर्धारण करने वाले दूसरे कारकों को न तो भुलाया जा रहा है न ही इनके महत्व को कम करने की कोशिश की जा रही है. भाषा का निर्धारण बाजार के अलावा समाज और विभिन्न संस्थान भी करते हैं. इसके निर्धारण के पीछे इन सबका अपना-अपना मकसद भी होता है. अपने-अपने मकसद के मुताबिक सभी अपनी भाषा गढ़ते और प्रयोग करते हैं. कुछ जगह यह प्रक्रिया सचेतन तो कुछ जगह अचेतन रूप से चलती रहती है.
जब इन मुद्दों पर विचार किया जाता है तब इसी से जुड़ा एक और सवाल उभरकर सामने आता है. वह सवाल है कि ‘अच्छी हिंदी कौन है?’ आखिरकार अच्छी हिंदी किसे माना जाए? इस अच्छाई के निर्धारण की कसौटी क्या होगी? साथ ही यह भी कि जिसे हम अच्छी हिंदी मान लेंगे, क्या उसे मानक का दर्जा देकर सबपर लादना उचित होगा? यहाँ उचित-अनुचित के सवाल को अगर थोड़ी देर के लिए छोड़ दें तो भी क्या यह मानक हिंदी इस भाषा के विस्तार के लिए मददगार होगी? लिहाजा हम हिंदी के किसी एक रूप को मानक घोषित कर इसकी अच्छाई के पक्ष में भले ही जितना तर्क दे दें और संभव है वे तर्क बिल्कुल जायज भी हों, लेकिन उससे हिंदी का प्रचार-प्रसार और विस्तार बाधित होगा.
दरअसल हिंदी का लचीलापन ही इसकी सबसे बड़ी खूबी है. अपनी इसी तरह की खूबियों के कारण इस भाषा की व्याप्ति बढ़ती जा रही है. लिहाजा अनेक ‘हिंदियों’ को किसी एक ‘हिंदी’ में फिक्स करने से उसके प्रसार पर बुरा असर पडे़गा. फिलहाल थोड़ी देर के लिए अखबार, इलेक्ट्रॅानिक चैनल और फिल्म में प्रयोग की जाने वाली हिंदी भाषा को नजरअंदाज कर दें, क्योंकि मर्सिया पढ़ने वाला जमात बिगड़ती हिंदी का उदाहरण यहीं से देता है और हिंदी को बिगाड़ने के लिए खास तौर से इन्हें ही जिम्मेवार मानता है. साथ ही साहित्य के सिर्फ एक विधा उपन्यास के मद्देनजर गौर करें तो किस हिंदी को अच्छी हिंदी मानेंगे? अच्छी हिंदी के निर्धारण में रोजमर्रा की जिंदगी में रच-बस गये अंग्रेजी शब्दों के लिए छूट और लोकभाषाओं के शब्दों के पुट के लिए जगह होगी या नहीं? हालाँकि आजकल अंग्रेजी के शब्दों के प्रयोग के साथ ही नाक-भौं ज्यादा सिकोड़ा जाता है. फिर भी यह पूछना जरूरी है लोकभाषाओं के विभिन्न शब्दों के लिए ‘अच्छी हिंदी’ में कितनी जगह होगी? अगर इनके लिए भी जगह नहीं होगी तो फणीश्वर नाथ रेणु (मैला आंचल), कृष्णा सोबती (जिंदगीनामा), अब्दुल्ल बिस्मिल्लाह (झीनीं-झीनीं बीनी चदरिया), एस. आर. हारनोट (हिडिंब) के उपन्यासों की हिंदी भी ‘अच्छी हिंदी’ की श्रेणी में नहीं आएगी. जबकि इन चारों महत्वपूर्ण रचनाकारों ने लोकभाषाओं के पुट से अपनी हिंदी की प्रकृति को बेहतरीन बनाया है. इसी के साथ यह सवाल भी जुड़ा है कि अंग्रेजी या विभिन्न लोकभाषाओं के शब्दों के उपयोग का अनुपात क्या होगा? इस अनुपात को तय करने की कसौटी क्या होगी? बहरहाल जीवन में, बोलचाल में जो शब्द रच-बस गये हैं उनसे नाक-भौं सिकोड़ना कहाँ तक उचित है? क्या बोलने और लिखने की भाषा में फर्क होना चाहिए? यहाँ हिंदी के प्रसिद्ध कवि भवानी प्रसाद मिश्र की चर्चित पंक्ति को याद करें तो शायद नाक-भौं का सिकोड़ना कम हो जाए.
‘‘जिस तरह तू बोलता है
उस तरह तू लिख और उसके बाद भी
सबसे अलग तू दिख.’’
पिछले करीब डेढ़ दशक में जबसे आर्थिक भूमंडलीकरण की प्रक्रिया तेज हुई है, हिंदी का विस्तार भी हुआ है. इसके साथ ही विभिन्न नये तकनीकों के प्रचार-प्रसार से भी हिंदी का एक नया रूप बनता दिख रहा है. विज्ञापन और विभिन्न माध्यमों के जरिये भी हिंदी का एक नया रूप विकसित हुआ है. हिंदी में नित्य बदलती परिस्थितियों के साथ अपना रिश्ता बनाया है और अपना विस्तार किया है. दरअसल नई परिस्थितियों के साथ बन रही ‘हिंदी’ का रूप ही मर्सिया पढ़ने वाले जमात को परेशान कर रहा है. इसलिए हिंदी खुद भी विमर्श का विषय बनती जा रही है. जरूरी है, किसी एक तरह की हिंदी का कट्टर समर्थन करने की बजाए इसके बहुवचन रूप यानी अनेक ‘हिंदियों’ के अस्तित्व को उदार मन से स्वीकार किया जाए. इसी के जरिये हमारी हिंदी का विस्तार भी होगा और संरक्षण भी. लेकिन हिंदी-हिंदी खेलने वाले लोगों का ध्यान इस पहलू पर नहीं है.
लोगों ने
जवाब देंहटाएंआज "हिंदी दिवस"
के उपलक्ष्य में
खूब खीर पकाया,
स्वयं भी खाया,
और सबको खिलाया.
जब मेरी जिव्हा
से टकराया
तो उसका स्वाद ख्ट्टाया
मेरे समझ आया
यह ' खीर ' ठीक नहीं!
- संतोष कुमार
आपके इस आलोचनात्मक लेख को पढ़कर मुझे अच्छा लगा, और इसी प्रकार के लेखन को मैं अपना हिंदी दिवस मानता हूं जो सच दिखाए,🙏
मैं ' हिंदी भाषा ' को एक दिवस के रूप में कभी नहीं आंकना चाहता ।
इस लेख के लिए आपको बधाई गुरुवर 🙏
मेरी प्यार की भाषा हिंदी भाषा / देश की भाषा हिंदी भाषा/
जवाब देंहटाएंआंतर राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त भाषा हिंदी भाषा /
भाषा ही शब्द हे / शब्द ही स्वर हे / स्वर ही आंतरिक गुंजाई हे / स्वर हीं आकर्षित करते हे / दिलं को लुभाते हे /
क्या भाषा मा से आती हे /भाषा समाज से आती हे/ भाषा देश से आती हे. भाषा अध्य यन ओर पठण से आती हे /
भाषा जीवन का प्राप्त यश ओर संघर्ष होती हे /
भाषा प्यार ओर भाई चारा होती हे /
भाषा इंसान की सभ्यता दर्षाती हे /
भाषा सत्यता ओर आचरण ही होती हे /
भाषा हम सब की यक्ता हे/ भाषा बहुं सांस्कृतिक भिन्न त दर्षा ती हे /;
भाषा मेरे समाज का इतिहास ओर संस्कृती हे/ भाषा मेरे मज हब. का धन होती हे भाषा मेरे जीत ओर हार का कारण हे/ भाषा मेरे दिमागी गुलामी कारण ही होती हे
भाषा मेरे दुःख ओर आनंद का कारण ओर साधन होती हे /भाषा मेरी हसना हे भाषा मेरे ओसू हे भाषा मेरा अज्ञान हे /
भाषा मेरा वर्तमान हे भाषा मेरा विरोध ही हे/
भाषा सत्यता का चलन हे/ भाषा असत्य इतिहास का भांडार हे /
भाषा.मेरा हर्ष हे. भाषा जीवन भरका पठण ओर गौरव हे /
यही 14सप्टेंबर20200 हिंदी भाषा दिवस अवस र पर मेरी धरती का श्वास ओर पुकार हे / की हिंदी ही मेरा देश अखंडित रखणेका.प्रयास करे यही हिंदी का कार्य कारण हे / इसी लिये हिंदी ही ज्ञान भाषा ओर देश ओर आंतर राष्ट्रीय भाषा निर्माण का कार्य हम करते र हेंगे /
मेरी प्यार की भाषा हिंदी भाषा / देश की भाषा हिंदी भाषा/
जवाब देंहटाएंआंतर राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त भाषा हिंदी भाषा /
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भाषा जीवन का प्राप्त यश ओर संघर्ष होती हे /
भाषा प्यार ओर भाई चारा होती हे /
भाषा इंसान की सभ्यता दर्षाती हे /
भाषा सत्यता ओर आचरण ही होती हे /
भाषा हम सब की यक्ता हे/ भाषा बहुं सांस्कृतिक भिन्न त दर्षा ती हे /;
भाषा मेरे समाज का इतिहास ओर संस्कृती हे/ भाषा मेरे मज हब. का धन होती हे भाषा मेरे जीत ओर हार का कारण हे/ भाषा मेरे दिमागी गुलामी कारण ही होती हे
भाषा मेरे दुःख ओर आनंद का कारण ओर साधन होती हे /भाषा मेरी हसना हे भाषा मेरे ओसू हे भाषा मेरा अज्ञान हे /
भाषा मेरा वर्तमान हे भाषा मेरा विरोध ही हे/
भाषा सत्यता का चलन हे/ भाषा असत्य इतिहास का भांडार हे /
भाषा.मेरा हर्ष हे. भाषा जीवन भरका पठण ओर गौरव हे /
यही 14सप्टेंबर20200 हिंदी भाषा दिवस अवस र पर मेरी धरती का श्वास ओर पुकार हे / की हिंदी ही मेरा देश अखंडित रखणेका.प्रयास करे यही हिंदी का कार्य कारण हे / इसी लिये हिंदी ही ज्ञान भाषा ओर देश ओर आंतर राष्ट्रीय भाषा निर्माण का कार्य हम करते रहेंगे /
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जवाब देंहटाएंआंतर राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त भाषा हिंदी भाषा /
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यही 14सप्टेंबर20200 हिंदी भाषा दिवस अवस र पर मेरी धरती का श्वास ओर पुकार हे / की हिंदी ही मेरा देश अखंडित रखणेका.प्रयास करे यही हिंदी का कार्य कारण हे / इसी लिये हिंदी ही ज्ञान भाषा ओर देश ओर आंतर राष्ट्रीय भाषा निर्माण का कार्य हम करते र हेंगे /
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जवाब देंहटाएंआंतर राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त भाषा हिंदी भाषा /
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क्या भाषा मा से आती हे /भाषा समाज से आती हे/ भाषा देश से आती हे. भाषा अध्य यन ओर पठण से आती हे /
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यही 14सप्टेंबर20200 हिंदी भाषा दिवस अवस र पर मेरी धरती का श्वास ओर पुकार हे / की हिंदी ही मेरा देश अखंडित रखणेका.प्रयास करे यही हिंदी का कार्य कारण हे / इसी लिये हिंदी ही ज्ञान भाषा ओर देश ओर आंतर राष्ट्रीय भाषा निर्माण का कार्य हम करते र हेंगे /
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भाषा हम सब की यक्ता हे/ भाषा बहुं सांस्कृतिक भिन्न त दर्षा ती हे /;
भाषा मेरे समाज का इतिहास ओर संस्कृती हे/ भाषा मेरे मज हब. का धन होती हे भाषा मेरे जीत ओर हार का कारण हे/ भाषा मेरे दिमागी गुलामी कारण ही होती हे
भाषा मेरे दुःख ओर आनंद का कारण ओर साधन होती हे /भाषा मेरी हसना हे भाषा मेरे ओसू हे भाषा मेरा अज्ञान हे /
भाषा मेरा वर्तमान हे भाषा मेरा विरोध ही हे/
भाषा सत्यता का चलन हे/ भाषा असत्य इतिहास का भांडार हे /
भाषा.मेरा हर्ष हे. भाषा जीवन भरका पठण ओर गौरव हे /
यही 14सप्टेंबर20200 हिंदी भाषा दिवस अवस र पर मेरी धरती का श्वास ओर पुकार हे / की हिंदी ही मेरा देश अखंडित रखणेका.प्रयास करे यही हिंदी का कार्य कारण हे / इसी लिये हिंदी ही ज्ञान भाषा ओर देश ओर आंतर राष्ट्रीय भाषा निर्माण का कार्य हम करते र हेंगे /
भाषा .एक सनातन क्षमा
जवाब देंहटाएं. क्षमा पूर्वक हे शब्द भय संस्कारातून वापरले म्हणून क्षमा जवळ केली आणि माफिला दूर सारले. हे अश्यासाठी की भाषेची टिव टिव व मराठी भाषेतील म्याव म्यावं जास्त ऐकायला व पाहायला मिळत आहे म्हणून वाचकाच्या खांद्यावरून मराठी भाषा कोठे पोहचणार आहे याबद्दल थोडे तिरकस व आ त्म चिंतन करण्यासाठी हा प्रयास केला आहे
भाषा संवाद हे तिचे जिवंत व चल व उपयुक्त स्वरूप होय पण मरण मारण काळात भाषा कशी व्यक्त होते ती निर्भय अभिव्यक्त होते का? ती संकुचित टाकून व्यापक होते का?ती जवळ. पास चाललेल्या सर्व अस्वस्थ पर्यावरणाला सामोरी जाते का ?भाषा हिंसक होते का?भाषा उपेक्षाच तिचे कार्य मानते का?भाषा व्यापक. एकात्म समाज निर्माण हेच कार्य मानते का?भाषा वर्तमानातील द्वेष व तुच्छता टाळण्यासाठी बंधू भावाचे आव्हान करने साठी प्रयत्न करते का? इतिहासाच्या वाळूत तोंड खापसून मराठी भाषा सारस्वत प्रभू कोणते उत्पादन काढीत असतात. भाषा इतिहास व ते भाषा निर्माण साहित्य हेच भाषा नव सामर्थ्य व सर्जन किती काळ मानण्याची.सक्तींकेली...जाते
काव्य प्रकार असोत .चरित्र असो नाटक असो कादंबरी असो एका एका मराठी भाषा व्यवहाराची महा चर्चा एक दोन दशक चालते आणि इतका हे अक्षर वागं म य आहे तर इथल्या परिवर्तनाचं काय ?इथले हे जागतिक पुरस्कार वादी कंपू वादी विद्यापीठीय अकदमिक साहित्यिक हेच मराठी भाषेचे अंतिम बोरू बणावेत की त्यांनीच इतराना बनवावे. इतकं मराठी भाधा व्यवहारच निरस रूप तयार केलं. जावं हे .ज्या मराठी वाचकांच्या खांद्यावर हे मराठी भाषा प्रेत व्हावं या स लावलं जातं आहे ते गाडगे संपादक काय? करीत आहेत
तेच दोन तप विषय तीच मांडणी.तेच.कनवेचे ढेकर तेच घराण्याचे उदत्ती करणं.त्याच भाषिक कसरती हे काय?वर्तमानातील फासी वाद.ला मुक मान्यता देण्यासाठी चाललेले अप्रत्यक्ष प्रयत्न नाहीत का?
भाषा ही वर्तमान असते ती वर्तमान प्रश्ना पासून पळ काढत असेल.तर अश्या मराठी भाषे ची.तिरडी वाचकांच्या खांद्यावर देवून किती .काळ हिंसा व स नृशंस शोषण चे पीक काढणाऱ्या हिंसा भाषा बंधूंना वाचका नी सहन.करायचे
त्यांचे मराठी भाषा राजकारणाचे ओझे.खांद्यावरून न्यायचे हे किती वर्ष चालणार हे कळत नाही
भाषा भिडू शिवाजी राऊत
सातारा
जी भाषा अन्वेषण .वचिकित्सा स्वीकारत नाही इतिहासाची.चिरफाड करीत नाही. मिथक.व प्रतीक तपासत नाही ती .भाषा जीर्ण भाषा भाषेच्या आक्रमण लढयात पराभूत व. नामशेष होणाऱ्या दिशेने जात नाही हे कशावरून म्हणायचे ?
जवाब देंहटाएंज्या भाषेला असत्य.तिटकारा नाही अत्याचार व अंगार नाही. जी.भाषा निर्भयता देत नाही ते नुसतेच प्रसवते व नव मूल्य निर्माण करीत नाही ती.भाषा वाचक म्हणून संपादकाच्या (सर्व प्रकारचे)जीवन मार्ग स्विकारतात हे अजबच आहे दीर्घ ता.व स्व.रंजन आणि बक्षीस वाद फसवणूक वाद हेच ज्या भाषेतील सुपुत्रांचे हेतू असतात तिथे.का. होणार आहे ?
ज्या भाषेत भविष्य आकलन तसेच वर्तमान. भया वह प्रश्न.निरसन यासाठी भाषा हेच सृजन व ज्ञान उपयोजन.आहे हे. प्रदान उध्यिध्ठ.मानून.ज न व्यवहार चालत नाहीत त्या.भाषेला सतत घोषणा देवून मोठे होता येत हे ही अजबच आहे
जी भाषा साहित्यिक च गट जोपासणे व वाढविणे त्या साठी मराठी भाषा नियतकालिके हीच भाषा जिवंत लक्षण मानून भाषा सेवा करीत व मेवा मिळवीत असतात. हे भाषा राजकारण कर्ते भाषेचे गद्दार ठरविण्याचे ठरविण्याचे भाषा सशक्त पर्यावरण तयार कधी होणार हेच महत्वाचे ?
भाषा निरंतर ज्ञान साधन व शेलिज्ञान चे प्रयोग असते व असावी
भाषा ही ज्ञान व मानवी जीवन मूल्य निर्माण चे अथक प्रयत्नातून विकसित होते ?
हे कसे तपासायचे हा निकष मराठी भाषेला लावता येतो का ?
मराठी लिखित भाषा ही इथल्या सनातनी संस्कृतीचे कित्येक शतकांचे प्रेत वाहते का?,मराठी भाषा सनातन व्यवहाराचे चिरे बंदी वा डे बांधकाम करते का,?
मराठी भाषा ही सनातनी प्रभुत्त वाद रुजविते म्हणून मराठी भाषेचं लिखित प्रेत रूप.शव हे विच्छेदन मह त कार्यासाठी सतत का वापरू नये ,?
भाषे सनातनी मार्तंड.हे. कला वाद अंतरंगात हिंसा देव धर्माचा अबाधित अधिकार वाद रुज वून.भाषा अभिमान व सर्णवर्धन कर्ते स्व त ला ठरवी त आहे त ?
भाषे ची सनातनी तिरडी ही.वाचक हे.खांद्यावरून आता फसवणूक.वादा मुळे खाली.ठेवणारा तुमची भाषा तुच्छता व हिंसा देते फसवणूक हेच तिचे निरंतर कार्य चालते तर
संपादक सनातन नेणिवेची मराठी. भाषा जीवन व्यवहारातील संवाद कर्ते हे पुढे चालवतील पण.तिचा फसवणूक.व हिंसा अत्याचार रोखण्यासाठी तिचे विच्छेदन.करीत.राहतील.किंबहुना त्यांनी ते केले नाही तर संपादकांचे संकुचित वादाचे भाषे चे गाडगे गतिमान पर्यायी भाषा निर्माण व्यवहाराची. वादळे तयार करीत राहावे लागेल .संवाद गर्जे पुरते साहित्य जीवन खर मानणारे यांनीच हे केले पाहिजे
भाषेचे मारेकरी व संस्कृतीचे मारेकरी हेच भाषा जगतातील हिंसा व जन व्यवहारातील हिंसा वा ढ वित फासिवाद पाळणा हलवित राहतात आणि पुरस्कार घेत राहतात ,दुसरीकडे बंडखोर साहित्यिक यांच्यावर महाचर्चा घडवून भाषा चां ढोल त्याच सनातन वाड्यात व स्वरांजन झाडाखाली वाजवीत राहतात . म्हणून मराठी भाषिक.बंधू.हो. मराठीला या मुठीतून मुक्त करण्यासाठी.तीच. अंगण तिचा प्रेदश चालून चालून वाचून.वाचून फिरून.फिरून. पहावू या.
भाषा भिडू शिवाजी राऊत
सातारा