अन्धश्रद्धा-भाव से आधुनिकता की पड़ताल : राजीव रंजन गिरि मध्यकालीन रचनाकारों में गोस्वामी तुलसीदास एक ऐसे कवि हैं जिनके बारे में परस्पर विरोधी बातें कही जाती हैं। समीक्षकों का एक तबका तुलसीदास के साहित्य में 'सामन्ती विरोधी मूल्य’ खोजकर उन्हें नितान्त 'सफेद’ घोषित करता है तो दूसरा तबका तुलसी-साहित्य को प्रतिक्रियावादी, सामन्ती मूल्यों का रक्षक मानकर खारिज़ करता है। इन परस्पर विरोधी मान्यताओं के बावजूद समीक्षकों का एक तबका ऐसा भी है जो मध्यकालीन परिवेश की सीमाओं के साथ-साथ तुलसी-साहित्य के सकारात्मक पहलुओं को भी स्वीकार करता है। श्रीभगवान सिंह की किताब 'आधुनिकता और तुलसीदास’ (भारती प्रकाशन, एफ 6/1 शाहपुर जट, नयी दिल्ली-49) तुलसी को न सिर्फ बढ़-चढ़कर 'सामन्त विरोधी’ मानती है अपितु मध्यकालीन-बोध की सारी सीमाओं को नज़रअन्दाज़ कर तुलसीदास को अत्यन्त आधुनिक घोषित करती है। भूमिका को छोड़कर यह किताब सात अध्यायों– राजनीतिक चेतना, सामाजिक चेतना, धर्म, ईश्वर और भक्ति, भाषा और समाज, समन्वयकारी या क्रान्तिकारी, मानस की सांस्कृतिक पक्षधरता एवं उपसंहार -- में विभक्त है। भूमिका में श्र...
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