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MAHATMA GANDHI : PHILOSOPHY AND ISM


 

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'आधुनिकता और तुलसीदास’

 अन्धश्रद्धा-भाव से आधुनिकता की पड़ताल : राजीव रंजन गिरि मध्यकालीन रचनाकारों में गोस्वामी तुलसीदास एक ऐसे कवि हैं जिनके बारे में परस्पर विरोधी बातें कही जाती हैं। समीक्षकों का एक तबका तुलसीदास के साहित्य में 'सामन्ती विरोधी मूल्य’ खोजकर उन्हें नितान्त 'सफेद’ घोषित करता है तो दूसरा तबका तुलसी-साहित्य को प्रतिक्रियावादी, सामन्ती मूल्यों का रक्षक मानकर खारिज़ करता है। इन परस्पर विरोधी मान्यताओं के बावजूद समीक्षकों का एक तबका ऐसा भी है जो मध्यकालीन परिवेश की सीमाओं के साथ-साथ तुलसी-साहित्य के सकारात्मक पहलुओं को भी स्वीकार करता है। श्रीभगवान सिंह की किताब 'आधुनिकता और तुलसीदास’ (भारती प्रकाशन, एफ 6/1 शाहपुर जट, नयी दिल्ली-49) तुलसी को न सिर्फ बढ़-चढ़कर 'सामन्त विरोधी’ मानती है अपितु मध्यकालीन-बोध की सारी सीमाओं को नज़रअन्दाज़ कर तुलसीदास को अत्यन्त आधुनिक घोषित करती है। भूमिका को छोड़कर यह किताब सात अध्यायों– राजनीतिक चेतना, सामाजिक चेतना, धर्म, ईश्वर और भक्ति, भाषा और समाज, समन्वयकारी या क्रान्तिकारी, मानस की सांस्कृतिक पक्षधरता एवं उपसंहार -- में विभक्त है। भूमिका में श्र...

गांधी का यूटोपिया और आधुनिक मानस -- राजीव रंजन गिरि

 गांधी का यूटोपिया और आधुनिक मानस -- राजीव रंजन गिरि हर बड़ा विचारक या नेता भावी समाज की रचना का सपना देखता है। यह स्वप्न उसकी समझ, चिंतन एवं दर्शन से निर्मित होता है। उसके इस यूटोपिया का परीक्षण उसके जीवन काल से शुरू होता है और कालांतर में भी होता रहता है। उसके यूटोपिया से वाद -विवाद- संवाद चलता रहता है। गांधीजी उन थोड़े दार्शनिक- नेताओं की श्रेणी में शुमार हैं , जो ऐसा कोई विचार नहीं देते जिसपर खुद अमल न कर सकते हों। भले ही वह विचार कितना भी महत्वपूर्ण हो। गांधीजी के हिसाब से उसका महत्व गौण है, अगर उसका सिद्धान्तकार खुद पहले उसे अपने जीवन में न उतारे। गांधीजी के मुताबिक शब्द और कर्म में एका नहीं होने पर शब्द नैतिक आभा खो देते हैं। मन, वचन और कर्म की का साझापन गांधी- चिंतन को ऊंचाई प्रदान करता है।     गांधी का यूटोपिया क्या है? भावी भारत के लिए जो स्वप्न वे देख रहे थे, उसकी बुनियाद क्या है? जवाब होगा- ग्राम स्वराज। ग्राम स्वराज गांधी- दर्शन की बुनियाद है और बुलंदी भी। इसी के आधार पर भावी राष्ट्र का सुन्दर सपना देख रहे थे। इसे जमीन पर उतारने के लिए सकर्मक प्रयास भी कर रहे थ...

प्रेमचन्द का प्रयोजन : राजीव रंजन गिरि

 प्रेमचन्द का प्रयोजन : राजीव रंजन  गिरि  उन्नीस सौ छतीस में प्रगतिशील लेखक संघ के बनने से पहले लेखकों का कोई संगठन नहीं था। उसके पहले किसी-किसी मुद्दे पर कुछेक लेखक एकजुट होते थे, पर यह एकजुटता संगठन का रूप नहीं ले पाती थी। मसलन, भाषा के सवाल पर उन्नीसवीं सदी के हिन्दी लेखकों का एका देखा जा सकता है। परन्तु यह एका संगठन नहीं था। उस दौर में, किसी खास लेखक के व्यक्तित्व से प्रभावित रचनाकारों का एक अनौपचारिक समूह दिखता है। उदाहरण के तौर पर हरिश्चन्द्र, जिन्हें लोगों ने भारतेन्दु कहकर सम्मान दिया था, के आभा मंडल से प्रभावित लेखकों का एक समूह था– जिसे 'भारतेन्दु मंडल’ के नाम से जानते हैं। जैसा कि इसके नाम से ही जाहिर है, यह संगठन नहीं था। संगठन एक आधुनिक अवधारणा है। 'प्रगतिशील लेखक संघ’ इस मायने में एक संगठन था। इसके उदय को भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन के व्यापक सन्दर्भ में ही समझा जा सकता है। इसके जन्म का भौतिक आधार राष्ट्रीय आन्दोलन ने ही तैयार किया था। पेरिस के 'पेन कान्फ्रेन्स’ की तर्ज पर सज्जाद जहीर, मुल्क राज आनन्द सरीखे लोगों ने, लन्दन में 'प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन...