एक थे बाबू अयोध्या प्रसाद खत्री -- राजीव रंजन गिरि मौजूदा दौर में हिन्दी-साहित्य का सामान्य विद्यार्थी अयोध्या प्रसाद खत्री को लगभग भूल चुका है। आखिर इसकी वजह क्या है? क्या अयोध्या प्रसाद खत्री का अवदान इतना कम है कि वह साहित्य के विद्यार्थियों के सामान्य-बोध का अंग न बन सकें। अथवा यह हिन्दी-साहित्य के इतिहासकारों और आलोचकों के दृष्टिकोण की खामी है या अध्ययन की किसी खास रणनीति का नतीजा? भारतेन्दु युग से हिन्दी-साहित्य में आधुनिकता की शुरुआत हुई। उस दौर के रचनाकारों को आधुनिकता की शुरुआत करने का श्रेय दिया जाता है, जो वाजिब है। इसी दौर में बड़े पैमाने पर भाषा और विषय-वस्तु में बदलाव आये। खड़ीबोली हिन्दी गद्य की भाषा बनी। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल सहित सभी इतिहासकार-आलोचकों ने विषय-वस्तु के साथ-साथ भाषा के रूप में खड़ीबोली हिन्दी के चलन को आधुनिकता का नियामक माना है। गौरतलब है कि इतिहास के उस कालखंड में, जिसे हम भारतेन्दु युग के नाम से जानते हैं, खड़ीबोली हिन्दी गद...